अबाध घूसखोरी के लिए ही हरैया तहसील में हुआ, प्राइवेट मुंशियों का आविष्कार !

• मुख्यमंत्री की आपत्ति के बावजूद ऊपरी कमाई के लिए पाले जा रहे प्राइवेट मुंशी।
• एंटी करप्शन आर्गनाइजेशन की पकड़ से बाहर होने के नाते ही पाले जा रहे गैर सरकारी मुंशी।

बस्ती - जिले की बदनाम तहसील हरैया में एक बार फिर प्राइवेट मुंशियों ने अपनी पैठ विधिवत बना ली है। जिनकी संख्या स्थाई कर्मचारियों से कहीं ज्यादा है। बार बार कई उप जिलाधिकारियों द्वारा परिसर से बाहर निकाल दिए जाने के बाद भी ये प्राइवेट मुंशी दुबारा कार्यालयों/ न्यायालयों में अपनी पैठ आखिर किसके इशारे पर बना लेते हैं ? इनका कार्यालयों/ न्यायालयों में मौजूद रहना यहां किस मजबूरी से है ? यह अब शोध का विषय बन चुका है।
                           
                          तहसील हरैया, प्रदेश की सबसे बड़ी तहसील बताई जाती है। यह इतनी बड़ी है कि कई नए बने जिले इससे छोटे बताए जाते हैं। ऐसे में जाहिर है यहां वादकारियों और अन्य कामों से आए लोगों की भीड़ भी किसी अन्य तहसील से कहीं ज्यादा रहती है। अब भीड़ ज्यादा तो फाइलें भी ज्यादा रहती ही हैं। अब अगर इन फाईलों और मुकदमों में कमाई को जोड़ दिया जाए तो वो भी बहुत ज्यादा हो जाती है। 
                           
                          अब समस्या यह कि, हर पत्रावली या वाद का निस्तारण अगर बिना दाम लिए ना किया जाय तो हो हल्ला मचने लग जायेगा। और अगर दाम लेकर किया जाय तो एंटी करप्शन वालों का खतरा सिर पर सवार रहता है। ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए ही घूसखोर अधिकारियों/ कर्मचारियों ने इस तहसील में प्राइवेट मुंशियों का आविष्कार किया है। जो पूरी तहसील के लगभग सभी कार्यालयों/ न्यायालयों में ससम्मान विराजमान देखे जाते हैं। सर्व विदित है कि, ये यहां के घूसखोरों को प्राणों से भी प्यारे होते हैं। जिसके चलते इन्हें किसी का भय किंचित नही रहता।

                        फुल कॉन्फिडेंस से महत्वपूर्ण कार्यालयों में बैठे ये मुंशी पहली निगाह में महत्व के सारे काम संपादित करने के नाते स्थाई कर्मी ही लगते हैं। इनमें अगर कुछ भिन्नता होती है तो वो यह कि, ये कार्यालय से बाहर निकल निकल कर परिसर में भी घूमते फिरते रहते हैं। ताकि लोग इनसे आसानी से मिल सकें। और सही गलत काम के लिए लेन देन की चर्चा भी कर सकें। लेनदेन करते हुए एंटी करप्शन वाले भी गैर सरकारी होने के नाते इनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। और यही इनकी सबसे बड़ी योग्यता भी होती है।
                     
                          घूस देने में सक्षम लोग इन्हें इशारों से किनारे बुलाते हैं। और सही गलत काम बताकर दाम तय हो जाने के बाद रकम उनके हवाले कर देते हैं। जो सुरक्षित ढंग से सम्बन्धित घूसखोर अधिकारी/ कर्मचारी के हाथ में पहुंच जाती है। और काम निर्विवाद रूप से द्रुत गति से सम्पन्न हो जाता है। 
                  
                      अब जब इन प्राइवेट मुंशियों की उपयोगिता और उनसे होने वाली घूसखोर अधिकारियों/ कर्मचारियों की निर्विवाद कमाई की चर्चा हो ही गई है, तो लगे हाथ इनसे आम अवाम को होने वाली परेशानियों का भी जिक्र कर ही लेते हैं। जो घूस देने मे असमर्थ होते हैं। और जिनमें फिलहाल इन घूसखोर अधिकारियों/ कर्मचारियों को कोई दिलचस्पी नहीं होती।
              
                           ऐसे तो परिसर भर में जनखों की तरह ताली बजा बजा कर खुलेआम हर किसी से सभी छोटे बड़े काम के लिए दाम मांगने की इन प्राइवेट मुंशियों को खुली छूट दी गई है। लेकिन इनकी असली कमाई पत्रावली छिपाकर या गायब करके होती है। 

                   महत्वपूर्ण पत्रावलियों को ये नाजायज मुंशी पहले तो छिपा देते हैं। बाद में जब जरूरतमंद परेशान होता है तो ये उसे खोजने का खर्चा मांगते हैं। ऐसे में अपना काम जल्दी कराने की मजबूरी में वो पत्रावली प्रकट करने के लिए मुंह मांगा दाम किसी तरह दे देता है। यह कमाई ही इन मुंशीयों की निजी कमाई होती है।
                 
                             गौरतलब है कि, कहने को तो ये एक सामान्य प्राइवेट मुंशी होता है। लेकिन जरूरत और कमाई के मुताबिक यह किसी भी कुर्सी पर फिट हो जाता है। कई न्यायालयों में तो इन्हें अहलमद तक की कुर्सी पर देखा जाता है। जहां से ये दाम मिल जाने के बाद तमाम मुकदमों का भविष्य तक तय कर देते हैं।

                           अभी बीते कुछ दिनों पहले ही की बात है। नायब सदर के यहां से दाखिल खारिज की एक पत्रावली कार्यालय से गायब हो गई। जिसे खोजने का नाटक करीब हफ्ते भर तक यहां के स्थाई और प्राइवेट कर्मियों द्वारा किया गया। लेकिन उसका कुछ अता पता नहीं चल रहा था। पत्रावली सोनबरसा गांव के एक विधवा की थी। जो पत्रावली खोजने का नाजायज खर्चा इन मुंशियो को देने से इन्कार थी। और मुंशी बिना दाम लिए पत्रावली प्रकट करने से इन्कार थे। विवाद बढ़ा तो मामला प्रेस के संज्ञान में आकर प्रकाशित होकर सरेआम हो गया। और उधर पत्रावली भी कुछ इस तरह मिल गई मानो गायब ही ना हुई रही हो। 
           
                         इन प्राइवेट मुंशियों के ऐसे अनगिनत कारनामे इस तहसील से आए दिन सामने आते रहते हैं। जिनका उल्लेख रोज रोज कर पाना संभव नहीं है। लेकिन इतना तो तय है कि, जबतक मुख्यमंत्री तक को आपत्तिजनक इन प्राइवेट मुंशियों को तहसील परिसर से बाहर नहीं निकाला जाता, यहां ना घूसखोरी रुकेगी। ना ही आम अवाम का यहां नियमित हो रहा शोषण ही बन्द हो सकेगा।



                   
                

                          
           

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